“डॉक्टर साहब, सब कुछ है… फिर भी मन खुश नहीं रहता। ये क्यों हो रहा है?”
मैं अक्सर अपने क्लिनिक में ये बात सुनता हूँ।
अच्छी नौकरी है, परिवार ठीक है, कोई बड़ी परेशानी नहीं — फिर भी एक अंदर से खालीपन, बेचैनी या ‘अधूरापन’ बना रहता है।
यह सिर्फ एक भावना नहीं है। ये एक मानसिक स्वास्थ्य संकेत हो सकता है — और इसका इलाज संभव है।
मुख्य लक्षण (Symptoms):
- अंदर से खालीपन महसूस होना, जैसे कुछ “मिसिंग” है
- हँसने या खुश होने में परेशानी, चाहे कारण हो
- कामों में रुचि न रहना (Anhedonia)
- हर समय सोच में डूबे रहना
- लोगों से कटाव, अकेले रहना
- “कुछ समझ नहीं आ रहा” वाली भावना
- बार-बार सोच आना कि “मेरे साथ कुछ तो गड़बड़ है”
इतिहास (History):
इंसान की भावना सिर्फ बाहरी चीज़ों से नहीं बनती — वो हमारे अंदर के सोचने के तरीके, बचपन के अनुभव, पुराने ज़ख्म और कई बार शरीर के केमिकल असंतुलन से बनती है।
कई बार, लोगों ने बचपन में बहुत दबाव झेला होता है या भावनात्मक ज़रूरतें पूरी नहीं हुई होतीं।
या कभी-कभी, सबकुछ होते हुए भी लाइफ का मतलब (meaning) खो जाता है।
कारण (Etiology):
- डिप्रेशन (Mild/Masked Depression) – बिना sadness के भी डिप्रेशन हो सकता है
- एंग्जायटी डिसऑर्डर – लगातार चिंता और सोच, जिससे खुशी गायब हो जाती है
- बर्नआउट – लगातार थकान, भावनात्मक रूप से सूखा पड़ जाना
- थायरॉइड या विटामिन की कमी – थकान, low mood के कारण
- परफेक्शनिज़्म – हर चीज़ में meaning ढूंढना, और कभी संतुष्ट न होना
- Trauma / Emotional neglect – बीते अनुभवों का असर
एपिडेमियोलॉजी (Epidemiology):
- हर 10 में से 1 शहरी भारतीय को यह भावना कभी न कभी होती है
- कामकाजी प्रोफेशनल्स, हाउसवाइव्स और कॉलेज स्टूडेंट्स में तेजी से बढ़ रही है
- महिलाएं इसको ज़्यादा रिपोर्ट करती हैं, लेकिन पुरुष अक्सर इसे छुपाते हैं
- 18 से 45 वर्ष की उम्र सबसे ज्यादा प्रभावित
रोग प्रक्रिया (Pathogenesis):
इस भावना के पीछे कई स्तर होते हैं:
- ब्रेन के न्यूरोकेमिकल्स जैसे serotonin, dopamine की गड़बड़ी
- नकारात्मक सोच के पैटर्न जो बार-बार activate होते हैं
- Emotional Circuit का dysregulation – जैसे कि Amygdala का overactivation
- नवीनता या meaning की कमी – दिमाग reward system से disconnect हो जाता है
उदाहरण (Personal Anecdote):
मुझे एक पेशेंट याद है — 32 साल की एक महिला, अच्छी नौकरी, खुशहाल शादी, फिर भी रोज़ सुबह उठकर रोती थीं। उन्हें समझ नहीं आता था कि क्यों।
थोड़ा बातचीत में समझ आया कि उनका पूरा ध्यान दूसरों की खुशी में था, खुद की ज़रूरतें दबा दी थीं।
CBT (Cognitive Behavioural Therapy) और थोड़े समय की दवा से उन्होंने फिर से जीवन का स्वाद महसूस किया।
वैज्ञानिक सहायता क्यों ज़रूरी है?
- “समझ लो, ठीक हो जाएगा” ये सलाह काम नहीं करती
- साइकोथेरेपी, मेडिकेशन, माइंडफुलनेस — सभी साइंटिफिक टूल्स हैं जो आज के ज़माने में scientifically proven हैं
- सिर्फ धार्मिक उपाय या जर्नलिंग से राहत मिल सकती है, लेकिन कारण को जड़ से पकड़ना ज़रूरी है
क्या करें?
- मदद माँगने में संकोच न करें
- अपने विचारों को जज मत करें
- साइकोलॉजिस्ट या सायकेट्रिस्ट से बात करें
- खुद को दोषी मानना बंद करें — ये आपकी गलती नहीं है
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Mind & Mood Clinic, Nagpur (India)
Dr. Rameez Shaikh, MD (Psychiatrist & Counsellor)
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डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। यह किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत मानसिक स्थिति की डायग्नोसिस या इलाज के लिए नहीं है। अगर आप या आपका कोई परिचित इस तरह की भावनाओं से जूझ रहा है, तो कृपया मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।
Dr. Rameez Shaikh (MBBS, MD, MIPS) is a consultant Psychiatrist, Sexologist & Psychotherapist in Nagpur and works at Mind & Mood Clinic. He believes that science-based treatment, encompassing spiritual, physical, and mental health, will provide you with the long-lasting knowledge and tool to find happiness and wholeness again.
Dr. Rameez Shaikh, a dedicated psychiatrist , is a beacon of compassion and understanding in the realm of mental health. With a genuine passion for helping others, he combines his extensive knowledge and empathetic approach to create a supportive space for his patients.